"शेफालिका का फूल"

ताक रही थी रोशनदान, पूर्णिम बैसाख रात में,
बंद अंधेरे कमरे में थी, सफेद फूल हाथ में।
परेशान इस दुनिया से, चारदीवारी में फंसी थी मैं,
याद भी नहीं मुझे, आखिर बार कब हंसी थी मैं।

मां कह गई थी, एक दिन चांद से कोई आएगा,
सफेद घोड़े वाला तुम्हें साथ ले जाएगा।
पर अब समझती हूं, शायद तुम्हें मेरा ख्याल नहीं,
तुम मुझे नहीं मिलोगे, मुझे इसका मलाल नहीं।

दुख बस इतना है, इस अंधेरे कमरे में,
चांद से रोशनी क्यों आती रही।
मैं रोज रात को तुम्हारे लिए फूल क्यों लाती रही।

कोई नहीं, अब मैं सो जाऊंगी, ऐसी ही बाल बिखेरे,
शेफालिका का फूल यह झड़ जाएगा सवेरे।

~आर्यन कुशवाहा